मै एक conservative परिवार में पैदा हुआ, पला, बढ़ा।
मै बहोत छोटा था तबसे माँ को घर के काम मै देखता था।
पर हमारे आजुबाजु के लोगो को, घर के सदस्यों को माँ का काम, काम नहीं लगता था।
दादा दादी कहते थे, वो कहा कुछ करती है? दिन भर घर में ही तो रहती है।
सबने मिलके मुझे यही बताया था, माँ काम नहीं करती, घर पे ही होती है।
और ये सिर्फ मेरी माँ के लिए नहीं था सबकी माँ के लिये था।
मुझे जब ठीक से बोलना भी नहीं आता था तबसे यही सिखाया गया था।
औरतों की, उनके काम की, उनके सपनों की, उनकी इच्छाओं की कुछ कीमत थी ही नहीं।
आज जब मै खुद के घर में खुद का सारा काम करता हु तो महसूस करता हु,
सारा काम तो माँ ही करती थी।
और हम कितने कठोर थे की उसकी मदद करने की बजाय उसे कहते रहते थे
माँ कुछ काम ही नहीं करती।